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आर्थिक सर्वेक्षण 2020-21: बड़े राजकोषीय घाटे, मुख्य मुद्रास्फीति लक्ष्य और प्रमुख takeaways के बीच ग्रीन बांड # Economic Survey 2020-21

Economic Survey 2021: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) ने शुक्रवार को लोकसभा में आर्थिक सर्वे (Economic Survey 2021) पेश कर दिया है. सर्वे के मुताबिक, वित्त वर्ष 2021 में GDP ग्रोथ रेट -7.7 फीसदी रहने की उम्मीद है. वहीं, Economic Survey के मुताबिक वर्ष 2021-22 में रियल GDP ग्रोथ रेट 11 फीसदी रहने की उम्मीद जताई गई है.  

आर्थिक सर्वे में कहा गया है कि इंडियन इकोनॉमी कोरोनावायरस के प्रभाव से निकलकर जबरदस्त बाउंस बैक करेगी और अगले वित्त वर्ष में देश की वास्तविक आर्थिक विकास गति 11 फीसदी रहने का अनुमान है. आर्थिक सर्वे में कहा गया है कि अगले वित्त वर्ष में नॉमिनल GDP 15.4 फीसदी रहने की उम्मीद है. 

लोकसभा में पेश Economic Survey में वित्त वर्ष 2021-22 की पहली छमाही में Real GDP ग्रोथ रेट 14.2 फीसदी रहने की उम्मीद जताई गई है. आर्थिक सर्वे में जो अनुमान लगाया गया है वह RBI और सेंट्रल स्टेटिस्टिक्स ऑफिस (CSS) के आंकड़ों से मेल खाता है. 

RBI ने अनुमान लगाया था कि FY2021 में इंडियन इकोनॉमी में 7.5 फीसदी की गिरावट आ सकती है. वहीं, CSS ने अनुमान लगाया था कि इकोनॉमी में 7.7 फीसदी की गिरावट आने की आशंका है.

बता दें, चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में आर्थिक वृद्धि दर में 23.9 प्रतिशत जबकि दूसरी तिमाही में 7.5 फीसदी की गिरावट आई थी. आर्थिक सर्वे पेश होने के बाद लोकसभा को आज पूरे दिन के लिए स्थगित कर दिया गया है.

आर्थिक सर्वे 2021 में (Economic Survey 2021) में कहा गया है कि भारत का करेंट अकाउंट सरप्लस (Current account surplus) इस वित्त वर्ष में GDP का 2 फीसदी रह सकता है.

आर्थिक सर्वे में भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए जो अनुमान लगाए गए हैं वही अनुमान अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (International Monetary Fund- IMF) ने लगाया था.

IMF ने कहा था कि वर्ष 2021-22 में भारत की रियल जीडीपी ग्रोथ रेट 11.5 फीसदी रह सकता है और 2022-23 में इंडियन इकोनॉमी में 6.8% की ग्रोथ देखने को मिलेगी. IMF ने कहा था कि भारत अगले दो साल दुनिया की सबसे तेजी से विकास करने वाली अर्थव्यवस्था होगी.

Economic Survey 2021: वार्षिक आर्थिक समीक्षा में नए कृषि कानूनों का मजबूती से पक्ष रखते हुए कहा गया है कि ये तीन कानून किसानों के लिए बाजार की आजादी के एक नए युग की शुरुआत करने वाले हैं. समीक्षा में कहा गया है कि इन तीन कानूनों का भारत में छोटे और सीमांत किसानों का जीवन सुधारने की दिशा में दीर्घकालिक लाभ हो सकता है. इन कानूनों को ‘मुख्य रूप से’ छोटे और सीमांत किसानों के फायदे को ध्यान में रख कर तैयार किया गया है. लगभग 85 प्रतिशत किसान इन्हीं श्रेणियों में आते हैं और ये एक ‘प्रतिगामी’ एपीएमसी (कृषि मंडी कानून) द्वारा विनियमित बाजार व्यवस्था के सबसे अधिक सताए लोग हैं. 

इस पूर्व-बजट दस्तावेज ने इन कानूनों का ऐसे समय पक्ष रखा है जबकि कई किसान संगठन इनको वापस लिए जाने की मांग को लेकर राष्ट्रीय राजधानी की विभिन्न सीमाओं पर दो माह से अधिक समय से धरना दे रहे हैं. 

आर्थिक समीक्षा 2020-21 में कहा गया है, ‘‘ (पहले की) कई आर्थिक समीक्षाओं में एपीएमसी (कृषि उत्पाद मंडी समितियों) के कामकाज और इस तथ्य पर चिंता व्यक्त की चा चुकी है कि वे एकाधिकार को प्रोत्साहित करती हैं. विशेष रूप से, वर्ष 2011-12, वर्ष 2012-13, वर्ष 2013-14, वर्ष 2014-15, वर्ष 2016-17, वर्ष 2019-20 की आर्थिक समीक्षा में, इस संदर्भ में आवश्यक सुधारों की आवश्यकता पर बल दिया गया था..” सर्वेक्षण में वर्ष 2001 के बाद से कृषि-बाजार सुधारों को लेकर की गई सिफारिशों पर भी प्रकाश डाला गया है, जिसमें कृषि वैज्ञानिक एम एस स्वामीनाथन की अध्यक्षता वाले राष्ट्रीय किसान आयोग और मोंटेक सिंह अहलूवालिया की अध्यक्षता वाले ‘रोजगार के अवसर पर कार्यबल’ के अलावा कई अन्य की सिफारिशें शामिल हैं. 

कृषि मंडी संबंधी के सुझावों में किसानों को अपने उत्पादों को सीधे प्रसंस्करण कारखाने या निजी क्षेत्र को बेचने का विकल्प देने, कृषि विपणन बुनियादी ढांचे का विकास करने के लिए राज्यों के एपीएमसी अधिनियमों और आवश्यक वस्तु अधिनियम का संशोधन करने जैसे प्रस्ताव किए गए थे. इनका उद्येश्य था कि कृषि जिंसों के बाधा मुक्त भंडारण और कृषि वस्तुओं की निर्बाध आवाजाही को सुनिश्चित किया जा सके.

संसद में 2020 के सितंबर महीने में, कृषक उत्पाद व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम, 2020, मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा पर किसानों के (सशक्तीकरण और संरक्षण) का समझौता अधिनियम 2020, आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, 2020 – ये तीन कानून, पारित किए गए.

सर्वेक्षण में कहा गया है कि नए कृषि कानूनों ने बाजार की आजादी के एक नए युग की शुरुआत की है और इनका भारत में किसान कल्याण की स्थिति में सुधार की दिशा में दूरगामी लाभ होगा. नए कृषि कानूनों के लाभों पर प्रकाश डालते हुए, सर्वेक्षण में कहा गया कि भारत में किसानों को अपनी उपज को बेचने में विभिन्न प्रतिबंधों का सामना करना पड़ा है. अधिसूचित एपीएमसी मार्केट यार्ड के बाहर कृषि उपज बेचने के मामले में किसानों पर प्रतिबंध थे.

किसानों को केवल राज्य सरकारों के पंजीकृत लाइसेंसधारियों को ही अपनी उपज बेचने के लिए बाध्य रहना पड़ता था. इसके अलावा, राज्य सरकारों द्वारा लागू विभिन्न एपीएमसी विधानों के कारण विभिन्न राज्यों के बीच कृषि उपज को लाने या ले जाने के मुक्त प्रवाह में बाधाएं मौजूद थीं.

इसके अलावा, सर्वेक्षण में कहा गया है कि एपीएमसी के नियमों के परिणामस्वरूप वास्तव में बहुत सी खामियां उजागर हुई हैं और परिणामस्वरूप किसानों को नुकसान हुआ है.

इसमें कहा गया है, ‘‘किसानों और उपभोक्ताओं के बीच कई मध्यस्थों की उपस्थिति से किसानों का लाभ प्रभावित होता रहा है. इसके अलावा, एपीएमसी द्वारा लगाए गए करों और उपकरों की लंबी सूची के कारण किसानों का लाभ प्रभावित होता है, जबकि केवल इन करों का बहुत मामूली हिस्सा ही मंडी आधारभूत ढांचा के विकास पर खर्च किया जाता है. इसमें कहा गया है कि मंडी परिसर में बुनियादी ढांचे की स्थिति खराब है और किसानों के लिए उचित मूल्य नहीं मिलता है.’’ हाथ से नाप तौल, एकल खिड़की प्रणाली और आधुनिक वर्गीकरण और छंटाई प्रक्रियाओं की कमी से काफी देरी होती है और माप त्रुटियां तो विक्रेता के खिलाफ ही होती हैं.

सर्वेक्षण में कहा गया है, “मौजूदा बाजार नियमों की उपरोक्त सीमाओं को स्वीकार करते हुए, विभिन्न समितियों ने कृषि वस्तुओं के विपणन में कई सुधारों की सिफारिश की थी.” सर्वेक्षण के अनुसार, मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा पर किसानों के (सशक्तीकरण और संरक्षण) का समझौता अधिनियम से प्रसंस्करणकर्ताओं, थोक व्यापारी, एग्रीगेटर्स, बड़े फुटकर व्यापारियों, निर्यातकों के साथ समझौते समय किसानों की स्थित मजबूत करेगा और प्रतिस्पर्धा के बराबरी का स्तर प्रदान करेगा.

यह किसान से बाज़ार के अप्रत्याशित उतार चढ़ाव के जोखिम को प्रायोजक की ओर हस्तांतरित करेगा और किसान को आधुनिक तकनीक और बेहतर कृषि लागतों तक पहुँच देगा. कानून में किसानों को पर्याप्त सुरक्षा प्रदान की गई है, क्योंकि किसानों की भूमि की बिक्री, पट्टे या बंधक पूरी तरह से निषिद्ध हैं और किसानों की भूमि भी किसी भी तरह की वसूली से सुरक्षित है.

किसानों को उपज के लिए अपनी पसंद का बिक्री मूल्य तय करने के लिए अनुबंध में पूरी शक्ति होगी. वे अधिकतम तीन दिनों के भीतर भुगतान प्राप्त कर सकेंगे. इस कानून के तहत पूरे देश में 10,000 किसान उत्पादक संगठन बनाने की योजना है.

आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम 2020 में आवश्यक वस्तुओं की सूची से अनाज, दाल, तिलहन, खाद्य तेल, प्याज और आलू जैसी वस्तुओं को हटा दिया गया है. इसका उद्देश्य निजी निवेशकों के मने से व्यावसायिक कार्यों में अत्यधिक विनियामकीय हस्तक्षेप का भय दूर करना है.

Economic Survey 2021: V-Shape में हुआ अर्थव्यवस्था में सुधार, जानिए-आर्थिक सर्वे की 10 बड़ी बातें



आइए, जानते हैं आर्थिक सर्वे की 10 बड़ी बातें-

आगामी वित्त वर्ष में भारत तेजी से आगे बढ़ेगा. वित्त वर्ष 2022 में नॉमिनल जीडीपी (Nominal GDP) का अनुमान 15.4 फीसदी पर रखा गया है. इसके अलावा वित्त वर्ष 2022 में रियल जीडीपी (Real GDP) ग्रोथ का अनुमान 11 फीसदी पर रखा गया है.

कोरोना महामारी के प्रकोप से अर्थव्यवस्था तेजी से बाहर निकल रही है. भारतीय अर्थव्यवस्था में V-Shape की रिकवरी देखने को मिली है. सर्वे में बताया गया कि कोविड-19 को देखते हुए समय पर लॉकडाउन लागू होने के चलते ही अर्थव्यवस्था में V-Shape रिकवरी दिखी है.

आर्थिक सर्वे 2021 में कहा गया है कि निवेश बढ़ाने वाले कदमों पर जोर रहेगा. ब्याज दर कम होने से कारोबारी गतिविधियां बढ़ेंगी. इसमें बताया गया कि कोरोना वैक्सीन से महामारी पर काबू पाना संभव है और आगे इकोनॉमिक रिकवरी के लिए ठोस कदम उठाए जाने की उम्मीद है.

आर्थिक सर्वे में कहा गया, ‘भारत की सॉवरेन क्रेडिट रेटिंग्स इकोनॉमी के फंडामेंटल्स के बारे में जानकारी नहीं देती हैं. इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ कि दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था को BBB-/Baa3 की रेटिंग मिली हो. भारत की वित्तीय नीति का फंडामेंटल मजबूत है. सॉवरेन क्रेडिट रेटिंग की कार्यप्रणाली को पारदर्शी बनाया जाना चाहिए.’

2019-20 के अस्थायी आंकड़ों के लिए वित्तीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद का 4.6 फीसदी है, जो 2019-20 के संशोधित अनुमानों में कल्पना किए गए वित्तीय घाटे से 0.8 फीसद तथा 2018-19 में राजकोषीय घाटे से 1.2 फीसदी अधिक है. 2018-19 की तुलना में 2019-20 के अस्थायी आंकड़ों में प्रभावी राजस्व घाटा जीडीपी का 1 फीसदी बढ़कर जीडीपी का 2.4 फीसदी हो गया.

कॉरपोरेट और व्यक्तिगत आयकर 2019-20 के अस्थायी आंकड़ों में कम हो गया है. इसका कारण मुख्य रूप से कॉर्पोरेट कर दर में कटौती जैसे संरचनात्मक सुधारों को लागू करने के कारण विकास में आई गिरावट रही, लेकिन राजस्व में रिकवरी प्रत्यक्ष है, क्योंकि मासिक सकल जीएसटी राजस्व संग्रह पिछले तीन महीनों से लगातार एक लाख करोड़ के आंकड़े को पार कर रहा है. दिसंबर, 2020 के लिए मासिक जीएसटी राजस्व दिसंबर, 2019 के मुकाबले जीएसटी राजस्व में 12 फीसदी बढ़ोतरी दर्ज करने के बाद 1.15 लाख करोड़ के स्तर पर पहुंचा है. यह जीएसटी लागू होने के बाद जीएसटी कर संग्रह का सबसे अधिक मासिक संग्रह है.

भारत सरकार ने 23 दिसंबर 2020 तक 41,061 स्टार्टअप्स को मान्यता प्रदान की है. देश में 39,000 से अधिक स्टार्टअप्स के माध्यम से 4,70,000 लोगों को रोजगार मिला है. एक दिसंबर 2020 तक SIDBI ने सेबी के पास रजिस्टर्ड 60 अल्टरनेटिव इन्वेस्टमेंट फंड्स (AFIs) को 4,326.95 करोड़ रुपये देने की प्रतिबद्धता जताई है. यह स्टार्टअप्स के लिए फंड ऑफ फंड्स के जरिए जारी किया जाए, जिसमें कुल 10,000 करोड़ रुपये का फंड है.

अक्टूबर, 2020 में प्रकाशित वार्षिक शिक्षा स्थिति रिपोर्ट (एएसईआर)-2020 चरण-1 (ग्रामीण) का उल्‍लेख करते हुए कहा गया है कि ग्रामीण भारत में सरकारी और प्राइवेट स्कूलों में नामांकित विद्यार्थियो के पास स्मार्ट फोन की संख्या में भारी वृद्धि दर्ज की गई है. 2018 में 36.5 फीसदी विद्यार्थियों के पास ही स्मार्ट फोन थे, वहीं 2020 में 61.8 फीसदी विद्यार्थियों के पास स्मार्ट फोन मौजूद थे. सर्वे में सलाह दी गई है कि उचित उपयोग किया गया तो शहरी और ग्रामीण, लैंगिक, उम्र और आय समूहो के बीच डिजिटल भेदभाव और शैक्षिक परिणाम में अंतर समाप्त होगा.

भारत में अगले दशक तक विश्व में सर्वाधिक युवाओं की जनसंख्या होगी. इसलिए देश का भविष्य तैयार करने के लिये इन युवाओं के लिये उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा प्रदान करने की क्षमता विकसित करना है. सर्वे के अनुसार, भारत ने प्राथमिक स्कूल स्तर पर 96 फीसद साक्षरता दर हासिल कर ली है.



 

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