1. भारत में LPG की कीमत अन्य देशों की तुलना में सबसे ज्यादा है.
2. पेट्रोल के लिए भारत दुनिया का तीसरा सबसे महंगा देश है.
3. वस्तुओं और सेवाओं की क्रय शक्ति समता (पीपीपी) का गणित क्या है?
4. ईंधन की कीमतें आम आदमी की कमाई और बचत को कैसे प्रभावित करती हैं?
गैस, पेट्रोल, डीजल की महंगाई की खबरें तो आप रोज सुनते ही रहते हैं. लेकिन यह जानकर आपको हैरानी होगी कि आपकी रसोई गैस यानी एलपीजी सिलिंडर की कीमत दुनिया में सबसे ज्यादा है. उस श्रीलंका से भी ज्यादा, जहां तेल और गैस के लिए इन दिनों मारा-मारी हो रही है और पेट्रोल पंपों पर आर्मी तैनात है. विश्वास नहीं होता? लेकिन यह सच है. भारत में एलपीजी दुनिया में सबसे महंगी है?
यही नहीं, पेट्रोल के मामले में भारत दुनिया का तीसरा और डीजल के लिए आठवां सबसे महंगा देश है. आपको कीमतों का यह अंतर सीधे तौर पर नहीं दिखेगा. लेकिन इसका गुणा-भाग उस फॉर्म्युले से निकला है, जिसे पूरी दुनिया दो देशों के बीच महंगाई की तुलना के लिए इस्तेमाल करती है. यानी परचेजिंग पावर पैरिटी (PPP) के आधार पर की जाने वाली गणना.
आप सोच रहे होंगे कि यह पीपीपी क्या बला है? तो वो हम आपको आसान भाषा में समझाएंगे ही, साथ ही बताएंगे कि कैसे दुनियाभर के कई देशों की तुलना में हम जरूरी चीजों के लिए ज्यादा दाम चुका रहे हैं.
एक डॉलर में 20-22 रुपये?
अगर आपसे पूछा जाए कि एक डॉलर में कितने रुपये होते हैं? तो आप आज का फॉरेक्स रेट देखकर बता देंगे कि लगभग 76 रुपये. लेकिन आप गलत ही नहीं, आपका जवाब हकीकत से कोसों दूर हो सकता है. वही सवाल थोड़ा घूमाकर लीजिए: अमेरिका में जो चीज 1 डॉलर में मिलती है, वो भारत में कितने में मिलेगी? जाहिर है, आप कहेंगे 76 रुपये में. लेकिन ऐसा नहीं है.
मसलन, अमेरिका में एक लीटर वॉटर बॉटल एक से डेढ़ डॉलर की पड़ती है, लेकिन भारत में यह केवल 20 रुपये में मिल जाएगी. ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि हर देश की लाइफस्टाइल, सैलरी, लिविंग कॉस्ट, मैन्यूफैक्चरिंग कॉस्ट अलग-अलग होती है. इसी से वहां चीजों के दाम तय होते हैं.
यानी पानी के मामले में एक डॉलर की परचेजिंग पावर करीब 20 रुपये के बराबर है. परचेजिंग पावर का मतलब है कि किसी करंसी से इंटरनेशनल मार्केट में कितनी चीजें या सेवाएं खरीदी जा सकती हैं? वर्ल्ड बैंक की ओर से एक परचेजिंग पावर पैरिटी (PPP) इंडेक्स जारी किया जाता है. इसमें हर देश की करंसी की एक परचेजिंग पावर वैल्यू दी जाती है. इसे आम बोलचाल में इंटरनेशनल डॉलर भी कहते हैं? इस इंटरनेशनल डॉलर का मूल्य, उस एक्सचेंज डॉलर वाले रेट से काफी कम होता है, जिसे आप रोज करंसी एक्सचेंज वाली सुर्खियों में सुनते ही रहते हैं.
इस तरह दो देशों की करंसी की परचेजिंग पावर की तुलना करके वहां के लीविंग कॉस्ट का आकलन किया जाता है. इसी के आधार पर आप दो देशों में मिलने वाली सैलरी की वास्तविक तुलना कर सकते हैं. मसलन, अमेरिका में 1 लाख डॉलर कमाने वाले व्यक्ति की सैलरी आपकी नजर में 76 लाख रुपये हो सकती है, लेकिन वास्तव में भारत में 25 लाख रुपये कमाने वाले व्यक्ति की लाइफस्टाइल उस अमेरिका वाले व्यक्ति की तुलना में ज्यादा बेहतर होगी. और यह सटीक कैलकुलेशन केवल परचेजिंग पावर के आधार पर ही संभव है.
LPG 3.5 डॉलर प्रति लीटर
तो अब आपको बताते हैं कि पीपीपी यानी इंटरनेशनल डॉलर के आधार पर भारत में गैस और तेल की कीमतें कितनी हैं. पीपीपी बेसिस पर भारत में एलपीजी (LPG) की कीमत 3.5 इंटरनेशनल डॉलर है. यह दुनिया में सबसे ज्यादा है. तुर्की, फिजी, यूक्रेन में एलपीजी गैस कीमत से भी कहीं ज्यादा है. इसे आप इस तरह समझिए कि स्विट्जरलैंड, फ्रांस, कनाडा, और ब्रिटेन में एलपीजी गैस की कीमत 1 इंटरनेशनल डॉलर प्रति लीटर है. यानी दुनिया के इन सबसे अमीर देशों के मुकाबले भारत में गैस कीमतें तीन गुना से भी ज्यादा हैं.
इसी तरह भारत में इंटरनेशनल डॉलर में पेट्रोल के दाम 5.2 डॉलर प्रति लीटर है, जो सुडान और लाओस के बाद सबसे ज्यादा है. डीजल की इंटरनेशनल डॉलर में कीमत 4.6 डॉलर प्रति लीटर है. यानी डीजल में भी भारत दुनिया का आठवां सबसे महंगा देश है.
PPP आधार पर GDP ज्यादा
आपको यह भी बताते चलें कि पीपीपी इंडेक्स जारी करने के लिए रोजमर्रा के जीवन में इस्तेमाल होने वाली जरूरी वस्तुओं और सेवाओं की एक बास्केट बनाई जाती है. उस बास्केट की कीमत के आधार पर ही दुनियाभर के देशों की परचेजिंग पावर तय की जाती है. इस पीपीपी के आधार पर जीपीडी और इकॉनमी का साइज भी तय होता है. बात जीडीपी की आई है तो यह भी जान लीजिए कि दुनियाभर के देशों के जीडीपी का कैलकुलेशन सबसे पहले उनकी घरेलू करंसी में किया जाता है. फिर उसे डॉलर में कन्वर्ट कर लिया जाता है. इसे नॉमिनल जीडीपी कहते हैं.
लेकिन यही जीडीपी जब परचेजिंग पावर के आधार पर इंटरनेशनल डॉलर में निकाली जाती है तो वह पहले से कहीं ज्यादा नजर आती हैं. मसलन, भारत की जीडीपी डॉलर टर्म्स में फिलहाल करीब 3 ट्रिलियन डॉलर है, लेकिन पीपीपी बेसिस पर देखें तो यह 10 ट्रिलियन इंटरनेशनल डॉलर से भी ज्यादा होगी. इस तरह इंडियन इकॉनमी अमेरिका और चीन के बाद तीसरी सबसे बड़ी इकॉनमी पहले ही बन चुकी है.